संस्कृति

DEWA SHAREEF MAZAR : जहां कुरान, होली साथ-साथ

DEWA SHAREEF MAZAR, A SYMBOL OF HINDU MUSLIM UNITY
यूपी की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी से महज़ 12 किलोमीटर दूर देवा शरीफ मज़ार (DEWA SHAREEF MAZAR) दुनिया भर में मुस्लिम-हिंदू एकता के लिए मशहूर है। यह MAZAR मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की पीढ़ी से ताल्लुक रखने वाले हाजी वारिस अली शाह की है। ख़ास ये है कि इलाके के नाम पर इनकी दरगाह का नाम पड़ा, जिसे DEWA SHAREEF MAZAR के नाम से जाना जाता है।
  • बाराबंकी, पंकज गुप्ता, क़ौमी रिपोर्टर

मुस्लिम-हिंदू एकता की मिसाल DEWA SHAREEF MAZAR पर पूरे साल कुरान की आयतें और ज़िक्रे इमाम हुसैन होता है. साथ ही हिंदुओं के त्योहार होली में अबीर और गुलाल से दरगाह कैम्पस सराबोर हो जाता है। होली के दिन वारिस अली साह की इस देवा शरीफ मजार पर हिंदू और मुसलमान मिलकर होली खेलते हैं।

देवा शरीफ मजार पर सूफी संत के समय से खेली जा रही होली

कहा जाता है कि यहां होली खेलने की रवायत हाजी वारिस अली शाह के वक़्त से ही शुरू हुई थी। उस वक्त उनके चाहने वाले गुलाल और गुलाब के फूल लाते थे और हाजी साहब के कदमों में रखकर होली खेलते थे। तब से चली आ रही ये रवायत आज भी जारी है।

DEWA SHAREEF MAZAR से होली के दिन निकाला जाता है जुलूस

देवा शरीफ मजार पर होली के दिन यहां के कौमी एकता गेट से गाजे-बाजे के साथ एक जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में होली खेलते हुए लोग मजार शरीफ तक आते हैं और दरगाह कैम्पस में जमकर होली खेली जाती है। होली के इस दिन का लोग पूरे साल इंतजार करते हैं। औरत हो या मर्द कोई भी इस सतरंगी होली से दूर नहीं रहना चाहता। वहीं कुरान का पाठ हर रोज होता है।

कौन थे सूफी संत हाजी वारिस अली शाह

हाजी वारिस अली शाह की पैदाइश हजरत इमाम हुसैन की 26 वीं पीढ़ी में हुई थी। उनके वालिद का नाम कुर्बान अली शाह था।सूफी संत वारिस अली शाह की पैदाइश इस्लामी महीने रमजान की पहली तारीख को हुई थी। बचपन में वह मिट्ठन मियां के नाम से जाने जाते थे। जब वह दो साल के थे तब वालिद का साया सर से उठ गया और जब वे तीन साल के हुए तो मां भी चल बसीं। लिहाजा इनकी देखभाल उनकी दादी और चाचा ने की।

हर मजहब के लोग हैं इनके मुरीद

कहा जाता है कि दो साल की उम्र में ही हाजी वारिस अली शाह ने कुरान याद कर लिया था। 15 साल की उम्र में वह अजमेर शरीफ ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में शामिल होते हुए हज पर निकल गए।उन्होंने कई बार हज किया।उन्होंने हमेशा प्यार,मोहब्बत,एकता और भाईचारे का पैग़ाम दिया। हाजी वारिस अली शाह लोगों को पैग़ाम दिया करते थे कि “जो रब है वही राम है”।उनकी याद में यहां हर साल उर्स के मौके पर बड़ा मेला लगता है।

होली और नए साल के पहले दिन उमड़ती है जबरदस्त भीड़

मजार पर हर नए साल के पहले दिन भी जबरदस्त भीड़ उमड़ती है।लोग मजार पर माथा टेककर ही नए साल के कामों की शुरुआत करते हैं।यही हाल होली पर होता है। हाजी साहब के चाहने वाले साल भर होली के दिन का इंतजार करते हैं।पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, बिहार, कोलकाता, कानपुर, सहारनपुर, मेरठ समेत पश्चिमी उत्तरप्रदेश के हजारों जायरीन होली से दो दिन पहले ही यहां आ जाते हैं।
मनजीत सिंह तो हरियाणा से पिछले 30 सालों से यहां आकर होली मनाते हैं और अपने साथ लाई हुई गुझिया लोगों में बांटते हैं। औरतें भी जमकर होली खेलती हैं।जबरदस्त भीड़ होने के बावजूद मजाल है कि कही कोई बदइन्तेज़ामी या किसी के साथ कोई बुरा बर्ताव हो जाए.

मज़हब के नाम पर चौड़ी होती खाइयों के बीच देवा शरीफ की यह दरगाह होली के दिन जो पैग़ाम देती है वही तो इस मुल्क में आपसी भाईचारे की बुनियाद है।


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