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इमाम हुसैन कौन थे, उनकी वेलादत के मौक़े पर जानिए

क़ौमी रिपोर्टर: आज 3 शाबान है ।इसी तारीख को सन 626 ईसवी में इमाम हुसैन की सरज़मीने अरब पर वेलादत हुई थी।इमाम हुसैन के वालिद हज़रत अली थे और नाना मोहम्मद साहब। इमाम हुसैन छह बरस की उम्र तक नाना यानि मोहम्मद साहब के ज़ेरे दस्त पले बढ़े।मोहम्मद साहब की रेहलत के बाद इमाम हुसैन अपने वालिद हज़रत अली के साथ ही दीनो दुनिया के उसूलों से वाक़फ़ियत हासिल करते रहे।

इमाम हुसैन ने हज़रत अबुबक्र,हज़रत उमर, हज़रत उस्मान और हज़रत अली के दौरे ख़िलाफ़त में इस्लाम का जो उरूज देखा उसे ज़वाल की मंज़िल तक ले जाने का सिलसिला उन्ही की ज़िंदगी में तब शुरू हुआ जब यज़ीद इब्ने मुआविया ख़लीफ़ा बना।यज़ीद इस्लाम के उसूलों के ख़िलाफ़ बदकारियों में मुलव्विस रहने वाला हाकिम था लेहाज़ा इमाम हुसैन ने उसकी बैयत से इनकार कर दिया।

यज़ीद को यह बर्दाश्त न हुआ और उसने हुक्म दे दिया कि या तो हुसैन बैयत तस्लीम करें वरना उन्हें क़त्ल कर दिया जाये।इमाम हुसैन ने यज़ीद की मंशा जानकर मदीने से कूफ़े की जानिब हिजरत की और इराक़ के कर्बला में उनके क़ाफ़िले को रोक दिया गया। यहां यज़ीदी लश्कर की कसीर तादाद के आगे इमाम हुसैन की बहत्तर साथियों वाला लश्कर काफ़ी कमज़ोर था। बावजूद इसके इमाम हुसैन का लश्कर जंग के मैदान में बहादुरी से लड़ा और यज़ीदी लश्कर के सामने हथियार डालने से खुद का शहीद हो जाना बेहतर समझा।

इमाम हुसैन कहा करते थे “ज़िल्लत की ज़िंदगी से इज़्ज़त की मौत बेहतर”।10 मोहर्रम सन 680 ईसवी को इमाम हुसैन ने यज़ीद के बैयत की ज़िल्लत को तर्क कर इज़्ज़त की शहादत हासिल कर ली।

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