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डॉक्टर मनीष चौहान ने अगर यह किया तो पलट जाएगी बाज़ी

दिलीप चौधरी
क़ौमी रिपोर्टर:रायबरेली की सदर विधानसभा सीट दिलचस्प होती जा रही है। यहां भाजपा से अदिति सिंह और सपा प्रत्याशी आरपी यादव हैं। इन दोनों के बीच कांग्रेस के जिस डॉक्टर मनीष चौहान को लोग डमी कैंडिडेट मानकर चल रहे थे उन्होंने दोनों प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी है। हालांकि बसपा से मोहम्मद अशरफ भी हैं लेकिन उन्हें मुस्लिम वोटर वोट कटवा ही मान कर चल रहा है। लेकिन उन्हें भी इसलिए हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि बसपा के बेस वोट को दरकिनार नहीं किया जा सकता। इन सबके बीच डॉक्टर मनीष चौहान अलग ही नज़रिए से चुनावी अखाड़े के पहलवान नज़र आने लगे। डॉक्टर मनीष चौहान को लेकर अनवर नगर के शैज़ी मज़ाक के लहजे में कहते हैं,कुछ नहीं तो उनके नर्सिंग होम में डिस्काउंट तो मिल ही जायेगा। इसी तरह जहानाबाद चौकी के पास रहने वाले राहिल की दलील कुछ और ही है। वह कहते हैं,पेशे से डॉक्टर हैं,अपना नर्सिंग होम चलाते हैं,दो दिन वह शहर छोड़ भी देंगे तो तीसरे दिन मरीज़ ही फ़ोन कर करके बुला लेंगे। वह कहते हैं,अगर विधायक बने तो अपनी बात उनसे कहना बहुत ही आसान है। मरीज़ बन कर जाएंगे और अकेले चैम्बर में सारा दुख दर्द कह सुन आएंगे। अमरीशपुरी कालोनी निवासी डॉक्टर धीरेन्द्र शर्मा कहते हैं,पढा लिखा सर्वसुलभ प्रत्याशी वह भी कांग्रेस से मिले तो सोनिया की रायबरेली में उन्हें कौन नहीं वोट करना चाहेगा। मजाकिया लहजे में की गयी यह बातें दरअसल इस सीट पर डॉक्टर मनीष चौहान के बढ़ते ग्राफ की तरफ इशारा कर रही हैं। इसके अलावा सदर सीट का जातिगत आंकड़ा भी उनके पक्ष में है। डॉक्टर मनीष  चौहान ही अकेले ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके पक्ष में थोड़ा थोड़ा वोट हर वर्ग से आ सकता है। डॉक्टर मनीष चौहान क्षत्रीय बिरादरी से होने के बावजूद अपने पेशे के चलते सभी के लिए स्वीकार्य हैं। इलीट क्लास खासतौर पर जाति और धर्म से उठकर ही वोट करता है जिसके खाते में डॉक्टर मनीष चौहान सबसे ज़्यादा आसानी से फिट होते हैं। उधर शहर की डॉक्टर लॉबी भी उनके लिए जी जान से जुटी है। डॉक्टर्स के संपर्क जहज़ाहिर हैं। शायद ही कोई परिवार हो जिसका किसी न किसी डॉक्टर से कभी न कभी सामना न हुआ हो। ऐसे में शहर के निजी चिकित्सक अपने पेशे को अंजाम देते हुए भी जनसंपर्क में जुटे हैं। जबकि अन्य प्रत्याशियों के पास यह अवसर नही हैं।
दरअसल रायबरेली सदर सीट पर जातिगत आंकड़ों से ज़्यादा कांग्रेसी और ग़ैर कांग्रेसी का आंकड़ा प्रभावी है। यहां बड़ी तादाद में कांग्रेसी वोटर है जो जाति धर्म से ज़्यादा हाथ के पंजे को पहचानते है। पिछले तीन दशक से स्वर्गीय अखिलेश सिंह की लोकप्रियता के आगे वह कांग्रेस मोह को दरकिनार कर देता था। यह पहला चुनाव है जब स्वर्गीय अखिलेश सिंह नहीं हैं। स्वर्गीय अखिलेश सिंह के न होने से इस बार वह वोटर स्वतंत्र है। अगर डॉक्टर मनीष  चौहान ने इस वोटर को पहचान कर इस वर्ग तक अपनी बात पहुंचा दी तो यहां बाज़ी पलट भी सकती है।

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